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मकर सक्रांति के अवसर पर राष्ट्रीय सोशल मीडिया संघ ने खिचड़ी भोज कार्यक्रम का किया आयोजन

मकर सक्रांति के  अवसर पर राष्ट्रीय सोशल मीडिया संघ ने खिचड़ी भोज कार्यक्रम का किया आयोजन


चीफ एडिटर राघवेन्द्र प्रताप सिंह

शाहजहांपुर के अल्हागंज मे राष्ट्रीय सोशल मीडिया संघ ने कस्बे के बस स्टेशन पर खिचड़ी भोज कार्यक्रम कर मकर संक्रांति का पर्व बडे धूमधाम से मनाया। बृहस्पतिवार की सुबह 9 बजे राष्ट्रीय सोशल मीडिया संघ (रजि०) के अध्यक्ष अमित वाजपेयी के नेतृत्व में अल्हागंज नगर व ग्रामीण ईकाई ने  एकत्र होकर पैदल यात्रियों व वाहनों में सफर कर रहे यात्रियों को खिंचडी भोज कराया। कार्यक्रम में सूरज तिवारी,संतोष शुक्ला, देशराज कश्यप,विजय सिंह उर्फ राहुल भइया,भानू शुक्ला,रामवीर कुशवाह,मोहम्मद अली,परवेज अहमद,शिवकिशोर प्रजापति, विपिन गुप्ता,सोनपाल यादव,नवाजुद्दीन, रामनाथ वर्मा,अरूण कुमार,सिताव अली,राजकुमार कश्यप,शेरसिंह आदि लोगो का सहयोग रहा।


श्री वाजपेयी ने कहा हमारा संगठन समाज सेवा का संगठन है हम सभी लोग मिलकर गरीब असाहय लोगो की मदद करते रहते व सभी लोग मिलकर पर्व व त्यौहारों पर कार्यक्रम करते रहते है। मकर संक्रान्ति भारत का प्रमुख पर्व है. मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति पर हर जगह की अपनी एक अलग परंपरा होती है. इस त्योहार में खिचड़ी खाई जाती है और दान दिया जाता है. इस दिन स्नान, दान-पुण्य तो किया ही जाता है. कहा जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे. इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा था।  इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था. मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.